समंदर- गेटवे ऑफ़ इंडिया- विधान भवन - चौपाटी - मेट्रो सिनेमा- होटल ताज - नरीमन हाउस- सी .एस. टी .......ये वो नाम रहे है जो हर भारतीय की जुबान पर रेंगते रहे है.इन्हीं आँखों से हम हकीकत भी देखते है और खवाब भी, खुली आँखों से ऐसा भयावह दृश्य एक काले -अंधेरे खवाब जैसा लगता है, एक ऐसा खवाब जिसमे धुंआ ही धुंआ और धुओं में लिपटी जिंदगियां. पिछले दिनों जो हुआ, उस पर यकीन करना मुश्किल हो रहा है , सबसे बड़ी वजह ये की आतंकवादियों का अंतर्राष्टीय स्थलों को चुनना.
पुरी दुनिया हम पे हंस रही है की हमने अपनी कमान किन जोकरों को दे रखा है . बेशर्मों को अगले चुनाव की अगली तैयारी में गंठजोड़ करते देख रहा हूँ पर अभी इस घटना को बीते एक ही हफ्ते हुए है पर इन्हे मैंने एक साथ बैठ कर इस समस्या का निराकरण कैसे निकले इस पर कभी मिलते नही देखा . हमारी लड़ाई तो दोनों तरफ़ से है एक घर के बाहर वालों से और दूसरी घर के अन्दर वालों से. अन्दर वालों का चेहरा धूमिल ज़रूर दिख रहा है पर ढूँढना हमें ही होगा कितने शर्म की बात है की जीन लोगों को हम चुन के भेजते है की ये हमारे देश का हित करेंगे वो ही इन सारे मंज़र के पीछे किसी न किसी रूप में मुख्य किरदार का काम निभा रहे है. जिन्हें हमारी सुरक्षा के लिए तत्पर होना चाहिए वो तो ख़ुद विशिष्ट सुरक्षा के बिच महफूज़ है और उनकी सुरक्षा कर रहे सैनिकों को कितनी ठेस लगती होगी जो इन बंदरों की सुरक्षा कर रहे है . आम् आदमी कैसे इस माहौल में जी रहा है ये तो तभी पता चलेगा जब इनकी सुरक्षा छीन ली जाए .
पुरी दुनिया हम पे हंस रही है की हमने अपनी कमान किन जोकरों को दे रखा है . बेशर्मों को अगले चुनाव की अगली तैयारी में गंठजोड़ करते देख रहा हूँ पर अभी इस घटना को बीते एक ही हफ्ते हुए है पर इन्हे मैंने एक साथ बैठ कर इस समस्या का निराकरण कैसे निकले इस पर कभी मिलते नही देखा . हमारी लड़ाई तो दोनों तरफ़ से है एक घर के बाहर वालों से और दूसरी घर के अन्दर वालों से. अन्दर वालों का चेहरा धूमिल ज़रूर दिख रहा है पर ढूँढना हमें ही होगा कितने शर्म की बात है की जीन लोगों को हम चुन के भेजते है की ये हमारे देश का हित करेंगे वो ही इन सारे मंज़र के पीछे किसी न किसी रूप में मुख्य किरदार का काम निभा रहे है. जिन्हें हमारी सुरक्षा के लिए तत्पर होना चाहिए वो तो ख़ुद विशिष्ट सुरक्षा के बिच महफूज़ है और उनकी सुरक्षा कर रहे सैनिकों को कितनी ठेस लगती होगी जो इन बंदरों की सुरक्षा कर रहे है . आम् आदमी कैसे इस माहौल में जी रहा है ये तो तभी पता चलेगा जब इनकी सुरक्षा छीन ली जाए .
मुझे नही लगता की हम भारतियों को जागने के लिए इस से बड़ी कोई वजह हो सकती है अगर इसके बाद भी हम अपने आप से रूबरू नही होते तो इस से बड़ी शर्म की बात हो ही नही सकती. क्या हम 9/11 जैसी घटना का इंतज़ार कर रहे है. इस से पहेल की तारीख हमें बदले हमें तारीख को बदल देना चाहिए .
2 comments:
hi.........
sahi mein agar hum ab bhi kisi doosare aatnki ghatna ka intezaar karte rahe to bas yahi kehna padega hum koi kide makode hain aurhumaari yahi halat honi chahiye, lekin agar is ghatna se humne sach mein kuchh sikha hai to please ab bhi waqt hai utho.....jaago.....ghar ke bahar apne doston aur pariwar se badi ek zimmedaari ko apna mazboot kandha do....is desh ko aatankiyon aur humaare so called rehnumaaon se bachane ka sahi samay aa gaya hai.....kick them out from our nation.
Jai Hind
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